फटे दुध से रसगुल्ला बना कर
खाने वाली जमात सक्रिय हैं , हर तरफ अवसरवादी लगें हैं तमाम टीवी विज्ञापनों में करोना
का नाम लिया जा रहा हैं , झाड़ू से
अगरबत्ती तक सब में करोना के लिऐ अदम्य मारक शक्ति का बखान हो रहा हैं , तमाम माडल कलाकार जिंगल में
करोना पर जीत की बातें कर रहे हैं ,लगभग हर दिन समाचार चैनल करोना पर वैक्सीन बनाने , प्रयोग करने , सस्ते , वेंटीलेटर, सेनेटाइजर टनल ,पीपीई कीट, बनाने की बात कर रहें हैं, सेनेटाइजर और मास्क सड़कों
पर बिक रहे हैं
यह कटु सच हैं कि गली में लम्बे समय से fair & lovely को fresh & lovely , Lifeboy को Lifebody और Dora को Dara कह कर गरीब लोगों को अमीरी
के शौक बेच कर गली का लाल हो रहा लाला भी गरीब के चुल्हे की आंच जलाऐ रखता हैं,
पर आज इलाज के नाम पर सम्मानीय पेशे में मुनाफखोरी का दीमक लग गया हैं, इलाज के
नाम पर खतरनाक रसायनिक दवाई के की बाढ आ गई हैं, स्वयं चिकित्सक इलाज के नाम पर
मरीज की नब्ज के बजाय जेब टटोल रहा हैं, संवेदना की खाट पर लिटाने के बजाय इलेक्टानिक
उपकरणो की तार में लपेट देना ज्यादा लाभकर समझता हैं, सोचिऐ क्या हर किसी को डाक्टर
मैं हूं कि आप सा टका सा जबाब देने वाली चिकित्सक की जानकारी के बिना आक्सीजन
के सिलेण्डर मरीज को लगाया जा सकता हैं, गुणवत्ताविहिन वेटिंलेटर अस्पताल में आ
सकता हैं , स्तरहीन टेस्ट कीट का प्रयोग किसी प्रयोगशाला में हो सकता हैं कतई
नही राजनैतिक निर्णय हो सकते हैं पर दबाब नहीं चिकित्साजगत की अपनी एक कसौटी हैं
जिस पर स्वय चिकित्सक को ही अपने पेशे का रगडना हैं और गुणवत्ता निर्धारित करनी हैं कटु सच ही तो हैं कि अगर डायबीटिज् की बीमारी के लिऐ दवा पर गर कोई सफल
अनुसंधान कर ले तो चिकित्सा का नोबेल पुरष्कार भी उसके सम्मान में कम होगा,
डायबीटिज् का विश्वव्यापी कितना बडा बाजार हैं, और इसके शर्तिया इलाज की कितने
सालों से कितनी बडी किमत चुका जा रही हैं कल्पना से परे हैं......
आपने गिनी पिग्स का नाम तो
सुना होगा। यह चूहों की परिवार की प्रजाति होती है इन्हें प्रयोगशालाओं में दवाओं, घातक रसायनों के प्रयोग के
लिए इस्तेमाल किया जाता है।
इस समय कोरोना से संक्रमित
मरीज ही नहीं हम सब की हालत गिनी पिग्स जैसी हो चुकी है।
हर कंपनी चाहती है कि इस
अवसर का फायदा उठाने में नित नये आश्वासन बेच कर धन बटोरने में लगा हैं ,सवाल जीवन से जुड़ा हैं
इसलिऐ गाहे-बगाहे सबकी दुकान चल रही हैं , तमाम खाद्य और औषधीय मापदंडों को तिलांजलि दे दी गई हैं,
ताजा उदाहरण करोना के लेकर...
प्रधानमंत्री मोदी का करीबी
समझा जाने वाला एक जइी बूटी व्यापारी और पतंजलि कंपनी का मालिक रामदेव भी अवसर का
लाभ उठा रहा है। इंदौर के कलेक्टर मनीष सिंह ने कल रामदेव की एक आयुर्वेदिक दवा को
कोरोना मरीजों पर परीक्षण करने की अनुमति दी है।
कलेक्टर महोदय बयान दे रहें
हैं पतंजलि रिसर्च फाऊंडेशन के
प्रस्ताव को अनुमति देते हुए एक एमबीबीएस डॉक्टर और एक आयुर्वेदिक डॉक्टर की
निगरानी में परीक्षण की अनुमति दी गई है। वो भी सिर्फ और सिर्फ 48 घंटे में ,
कलेक्टर कौन होता है अनुमति
देने वाला ?
भारत का क्लीनिकल ट्रायल नियम
कहता है कि इसकी अनुमति स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया देगा।
ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया की
एथिक्स कमेटी पूरे परीक्षण की निगरानी रखेगी और गिनी पिग बने मरीज की मौत या
शारीरिक नुकसान होने पर उसे मुआवजा दिया जाएगा।
यह कैसा खिलवाड़ हैं ? अगर रामदेव की दवा खाकर मरीज की मौत हो जाती है तो प्रशासन
उसे कोरोना से मौत मानकर मुर्दे को सीधे जला देगा,
निश्चित तौर पर हमारे निर्धारित मापदंड बंदर के हाथ उस्तरे
वाले ही हैं,