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शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

रिश्वत



देश के तमाम दफतरो में विभ्न्नि काम से चक्‍कर लगाते हुऐ बहुतेरे लोग अनावश्यक देरी, सवालो , दस्‍तावेजो की मांग से असंतुष्‍ट होकर कुछ देर के लिऐ ही पर निश्चित रूप से अफसर अथवा विभाग में शिकायत दर्ज करने की भूमिका तो तैयार करते ही हैं पर 95 फीसदी लोग अन्‍तत व्‍यवस्‍था के साथ ले दे कर समझौता कर ही लेते हैं, और 5 प्रतिशत लोग या तो दफतरो में आऐ बिना ही या फिर इस सेटिंग के साथ आते हैं कि देना तो पडेगा ही जो उनकी भाषा में सुविधा शुल्‍क हैं परेशानी तो उन 95 फीसदी लोगों हैं जो सीधे सरल व सामान्‍य सोच के लोग हैं जो दफतरी दस्‍तूर की इस भाषा से नावाफिक हैं तमाम भष्‍ट्राचारी का हो हल्‍ला भी इन्‍होने ही मचा रखा हैं देश के शासक प्रशासक वर्ग तो इन सरदर्द कभी का निपटा देता पर प्रजातंत्र में सिर गिने जाते हैं और संख्‍या में ये ही ज्‍यादा हैं, कार्य और नियमों के सीधे रास्ते के बावजूद पीछे के दरवाजे से कार्य करवाने और करने का एक दलाल साम्राज्य है। लोग भी सोचने लगे हैं कि दप्तर की मेजों के गिर्द चक्कर काटते रहने से यह आसान और सुविधाजनक है, जिसमें आप रोज-रोज की जिल्लत और तनाव से बचे रहते हैं। घर बैठे काम हो जाता है। परंतु यह सुविधा उन तमाम लोगों के रास्ते बंद कर देती है जो ज्यादा धन नहीं खर्च कर सकते। उन पर देश के आम आदमी होने का ठप्पा लगा रहता है जिसके लिए कुछ भी आसान नहीं होता। अब तो पूरे भारत में कहा जाने लगा है कि भ्रष्टाचार इतना ज्यादा बढ़ गया है, अध्ययन बताता है कि छोटी-छोटी रकम के तौर पर जो रिश्वत दी जाती है उसकी राशि हर साल 21068 करोड़ हो जाती है। तीन चौथाई लोग महसूस करते हैं कि भ्रष्टाचार दिन-ब-दिन बढ़ रहा है।
स्‍व. राजीव गांधी ने रूपये से 15 पैसे की जिस यात्रा का जिक्र काफी चिन्‍ताजनक आश्‍चर्यजनक से ढंग से की थी उसको उतने ही सरल ढंग से चौराहे पर वर्दी का रौब दिखा कर सौ पचास रूपये ऐंठने वाला पुलिस का हवलदार भी बडे सामान्‍य सहकारिता के हिसाब में इन रिश्वत के रूपयो में गृह मंत्रालय तक की भागीदारी समझा देता हैं, दरअसल रिश्वत का सुविधा शुल्‍क में बदल जाना हमारी नैतिकता के उस विरोधाभास की ओर ईशारा करता हैं जिसमे अब सही-गलत, जायज-नाजायज, आत्मा के उत्थान-पतन, शर्मिंदगी का भाव, के इन सबसे वे लोग काफी ऊपर उठ चुके हैं, हम लोग लम्‍बें लम्‍बें लेख में लिख कर, लच्‍छेदार भाषणो में रिश्वत का विरोध तो करते हैं पर दूसरे ही दूसरे पल रेल यात्रा के लिऐ ले दे कर टिकट जुगाड की बाते करते हैं या बडी बडी डोनेशन कालेजो में अपने बच्‍चों को पढाने की जुगत में लग जाते हैं तब पुरूषार्थ क्‍यो नही काम करता किसी न किसी का तो हक मार ही रहे हैं,असैर यही आचरण सफलता की पुंजी हैं , सफल डाक्‍टर मरीज को मरने नही दे रहा तो ठीक भी नही होने दे रहा हैं, इसी तरह वकील अपने क्‍लाईण्‍ट को हारने नही दे रहा तो जीतने भी नही दे रहा, इन्‍जीनियर प्रत्‍येक निर्माण से पहले उसके पुनं निर्माण की भूमिका तैयार रखता हैं,सियासत के सयानो की जमात अर्थात संसद में रूपयो का लहराना या इसमें सवाल पुछने के लिऐ रूपये लेना ये सब सामान्‍य सा हो गया हैं, गुहार कहां लगेगी कौन सुनेगा, सैकडो तो आईएएस अधिकारियों की सूची अखबार में छपी, जिनके विरुद्ध गंभीर भ्रष्टाचार के केस चल रहे हैं। देश का प्रशासन चलाने वाले उच्चाधिकारी भी ऐसे गंभीर दोषों के लिए सफाई ढूंढने में प्रयत्नशील हैं। दस आईपीएस अधिकारी, जिनमें तीन पुलिस महानिदेशक हैं, आपराधिक मामलों की पूछताछ को लेकर संशय के घेरे में हैं। अध्ययन बताता है कि छोटी-छोटी रकम के तौर पर जो रिश्वत दी जाती है उसकी राशि हर साल 21068 करोड़ हो जाती है। आज राजनीति का चेहरा इतना भयभीत करने वाला है कि संसद और विधानपालिका गुंडों, हत्यारों और भ्रष्ट लोगों की शरणस्थली बनती जा रही है। दप्तरों में बड़े साहब जब आम आदमी की शक्ल देखना पसंद नहीं करते तो भ्रष्टाचार के धन पर एठते हुए वह एक साधारण व्यक्ति की शिकायत पर ध्यान कैसे दे पायेंगे?
सतीश कुमार चौहान 098271 13539
भिलाई

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