पिछले दिनो आफिस से लौटते हुऐ रात साढे आठ बजे सब्जी बाजार से निकलते ही अन्धेरे में झपटामार किस्म से एक वर्दीधारी पुलिस ने गाडी रोकने का ईशारा करते हुऐ चाबी निकाल ली हम हडबडा कर रूके पेपर दिखाईऐ मैं कुछ तिलमिलाया घर जाने की जल्दी थी पर दात्यिव था, हमने गाडी को रोकते हुऐ देखा चार छ पुलिस वाले छिपे व छिटके हुऐ इसी तरह अन्धेरे में अलग अलग लोगो के साथ गाडी चेकिंग के नाम पर हिसाब जमा रहे थे जिससे न जमा उसके लिऐ उसके लिऐ एक महिला पुलिस स्कूटी पर बैठ कर चालान बना रही थी, हम पेपर निकाल ही रहे थे कि एक परिचित के साथ भी ऐसा ही झपटामार हुआ पर ये मित्र वकील थे एकवम से बिफर गऐ, उन्होने सुर्यास्त के बाद के तमाम कानून बताते हुऐ हमारी तरह हाथ बढाते हुऐ बढे, मित्र के तेवर देख पुलिस जवान की हालत तो पतली हो गई थी पर पुलिसीया अकड से घूर रहा था, कि हमारे मित्र ने फिर तेश में आते हुऐ फटकार लगाई पब्लिक सर्वेट हो व्यव्हार सुधारो और अपने मुखिया से पुछो कि इस राज्य के आम खास लोगो को साथ में कानून की किताब ले कर चलना पडेगा ...... और जान लो की घूरने पर भी धारा लगती हैं .......सतीश कुमार चौहान भिलाई
शनिवार, 11 जून 2011
घूरने पर भी धारा लगती हैं
अगर आपको सुना दिखा सब सही लगता हैं तो निश्चय ही आप मुझसे असहमत होगें, क्योकी मेरी अब तक की जिन्दगी के अनुभवो में पांखण्ड ही ज्यादा नजर आया किसी ने रिश्तो की रस्म अदायगी की, तो किसी ने फर्ज या दायित्व कह कर टाल दिया , गरीब हो कर सीखा की मेहनत से आदमी अमीर होता हैं पर अमीर मेहनत कराने वाला हुआ, धूप,बरसात,गर्मी और ठंड में जी तोड मेहनत करता मजदूर गरीब ही रहा, बाजार में बचत करके अमीर होने की बात भी खारिज हो गई क्योकी यहां भी खर्च करने वाला ही अमीर हैं, जनप्रिय की कसौटी पर जनप्रतिनीधि ज्यादा ही जनता से दूर हैं ,सर्वव्यापी भगवान भी बेबस हैं उनके कपाट खुलने बन्द होने नाहने ,वस्त्र धारण, भोग का वक्त भी धर्म के ठेकेदारो द्वारा निर्धारित किया जा रहा हैं सरकारी दफतरो की तरह यहां भी सुविधा शुल्क हैं , डाक्टर मरने तो नही देता तो ठीक भी नही होने देता , वकील हारने नही देता तो जीतने भी नही देता, गुरू का दर्जा कर्मचारीयो जैसा हैं,और इस तरह जब सच न दिखे तो झूठ भी क्यो टिके .......? ब्लागिग में मेरा यही मिशन हैं .....
जन्मदिन 30 अक्टुबर 1968
स्थान भिलाई

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