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शनिवार, 11 जून 2011

घूरने पर भी धारा लगती हैं

पिछले दिनो आफिस से लौटते हुऐ रात साढे आठ बजे सब्‍जी बाजार से निकलते ही अन्‍धेरे में झपटामार किस्‍म से एक वर्दीधारी पुलिस ने गाडी रोकने का ईशारा करते हुऐ चाबी निकाल ली हम हडबडा कर रूके पेपर दिखाईऐ मैं कुछ तिलमिलाया घर जाने की जल्‍दी थी पर दात्यिव था, हमने गाडी को रोकते हुऐ देखा चार छ पुलिस वाले छिपे व छिटके हुऐ इसी तरह अन्‍धेरे में अलग अलग लोगो के साथ गाडी चेकिंग के नाम पर हिसाब जमा रहे थे जिससे न जमा उसके लिऐ उसके लिऐ  एक महिला पुलिस स्‍कूटी पर बैठ कर चालान बना रही थी, हम पेपर निकाल ही रहे थे कि एक परिचित के साथ भी ऐसा ही झपटामार हुआ पर ये मित्र वकील थे एकवम से बिफर गऐ, उन्‍होने सुर्यास्‍त के बाद के तमाम कानून बताते हुऐ हमारी तरह हाथ बढाते हुऐ बढे, मित्र के तेवर देख पुलिस जवान की हालत तो पतली हो गई थी पर पुलिसीया अकड से घूर रहा था, कि हमारे मित्र ने फिर तेश में आते हुऐ फटकार लगाई पब्लिक सर्वेट हो व्‍यव्‍हार सुधारो और अपने मुखिया से पुछो कि इस राज्‍य के आम खास लोगो को साथ में कानून की किताब ले कर चलना पडेगा ...... और जान लो की घूरने पर भी धारा लगती हैं .......सतीश कुमार चौहान भिलाई

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