कमीशन की बीमारी
पिछले दिनो सेल द्वारा संचालित प्रदेश के सबसे बडे अर्थात 1000 बिस्तर के और सुविधासम्पन्न आलिशान अस्पताल के आपात कक्ष के पास से गुजर रहा था कि एक बदहवाश ग्रामीण ने मुझे रोकते हुऐ एक पर्ची दिखाते हुऐ पता पुछा, एक प्राईवेट और अपेक्षाक्रत स्तरहीन अस्पताल का पता था जहां असानी से पहुचना भी मुश्किल था, मैने पता बताने से पहले पुछ ही लिया क्यों..., उसने छाती से लगाऐ छोटे से बच्चे को दिखाते हुऐ बताया कि खेलते बच्चे को कोई स्कूटर से मार कर चले गया चालीस किलोमीटर दूर गांव से लाऐ हैं, डाक्टर हाथ नही लगा के देखने के बजाय पर्ची लिख दिया हैं यहां जाओ,मैंने बच्चे को देखा बच्चे का शरीर अकड रहा था, संभवत् दिमाग की किसी नस पर चोट से हो रहा रिसाव का खून कही जम रहा था, और इससे दिमाग सुन्न हो रहा था ऐसे में ये आवश्यक था, बच्चे को तुरंत Anticoagulant like heparin देकर बचाव किया जा सकता हैं, मैंने बेहतर समझा की उपस्थित चिकित्सक से ही बात की जाय तो जूनियर डाक्टर जी ने पहले तो मुझे मेरी औकात बताई,फिर उस ग्रामीण पर नेतागिरी करने का आरोप लगाते हुऐ बच्चे के प्रति अशोभनीय टिप्पणी करने लगे , तब तक मैं काफी उग्र होते हुऐ उपलब्ध ज्वांइट डायरेक्टर से मिला तो उन्होने अपने अस्पताल में पदस्थ पिडियाट्रीक न्यूरो फिजीशियन द्वारा महापौर का चुनाव लडने की वजह से जनसम्पर्क में व्यस्त हैं , खैर मेरे हो हल्ला से बच्चे का इलाज तो शुरू हो ही गया था,
यहां मेरा ये सवाल था कि जिस प्राईवेट अस्पताल में नवयुवक पिडियाट्रीक न्यूरो फिजीशियन के लिऐ इस बच्चे को भेजा जा रहा वहां इस बात की कोई गारंटी नही थी की वे वहां उपस्थित होगें ही उनकी ओ.पी. डी; तो प्रदेश के तीन शहरो में हैं और वे स्वयं तमाम छोटे बडे नर्सिग होम में भाग भाग कर इलाज करने के शौकिन हैं जबकी ऐसे केस को जहां बच्चे का सही जगह पर पहुचना निश्चित न लग रहा हो आनन फानन में एम.डी.मेडिसिन की सेवाऐ ली जा सकती हैं,जो की इस अस्पताल में सीनियर जूनियर मिलाकर आठ दस तो हर वक्त ही रहते है, पर यहां ये भी स्पष्ट करना आवश्यक हैं कि पिडियाट्रीक न्यूरो फिजीशियन न सही पर न्यूरो फिजीशियन एक और यहा पदस्थ हैं जिनकी बेहतर सेवाऐ ली जा सकती थी ,
मैं गैरचिकित्सक होने की वजह से दरअसल इस प्रकरण को लापरवाही या नासमझी मानकर टालना कतई उचित नही समझता सीधे तौर पर यह कमीशन का जानलेवा खेल हैं अपेक्षाक्रत स्तरहीन अस्पताल से इस केस के पहुचने मात्र से पर्ची देने वाले डाक्टर की जेब गरम कर देते.............
सतीश कुमार चौहान, भिलाई,
सोमवार, 26 अप्रैल 2010
कमीशन की बीमारी
अगर आपको सुना दिखा सब सही लगता हैं तो निश्चय ही आप मुझसे असहमत होगें, क्योकी मेरी अब तक की जिन्दगी के अनुभवो में पांखण्ड ही ज्यादा नजर आया किसी ने रिश्तो की रस्म अदायगी की, तो किसी ने फर्ज या दायित्व कह कर टाल दिया , गरीब हो कर सीखा की मेहनत से आदमी अमीर होता हैं पर अमीर मेहनत कराने वाला हुआ, धूप,बरसात,गर्मी और ठंड में जी तोड मेहनत करता मजदूर गरीब ही रहा, बाजार में बचत करके अमीर होने की बात भी खारिज हो गई क्योकी यहां भी खर्च करने वाला ही अमीर हैं, जनप्रिय की कसौटी पर जनप्रतिनीधि ज्यादा ही जनता से दूर हैं ,सर्वव्यापी भगवान भी बेबस हैं उनके कपाट खुलने बन्द होने नाहने ,वस्त्र धारण, भोग का वक्त भी धर्म के ठेकेदारो द्वारा निर्धारित किया जा रहा हैं सरकारी दफतरो की तरह यहां भी सुविधा शुल्क हैं , डाक्टर मरने तो नही देता तो ठीक भी नही होने देता , वकील हारने नही देता तो जीतने भी नही देता, गुरू का दर्जा कर्मचारीयो जैसा हैं,और इस तरह जब सच न दिखे तो झूठ भी क्यो टिके .......? ब्लागिग में मेरा यही मिशन हैं .....
जन्मदिन 30 अक्टुबर 1968
स्थान भिलाई


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