शनिवार, 2 अक्टूबर 2010
काठ की हाण्डी
लम्बे समय के बाद फिर अयोध्या का आंतक, मीडिया और सरकार के सर चढ कर बोला, खैर जो हो हल्ला था वह भी तीन जजो के बेंच के निर्णय के सामन ही फिस्स हो गया, यह तो तो साठ साल पहले जैसा ही हैं आपस में बांट लो, न जमे तो लड लो, अब तो आखडा भी हैं, मंदिर था या मस्जिद का बुनियादी सवाल अब भी गोलमोल ही हैं, सुप्रीम कोर्ट अर्थात कारखाना चलता ही रहेगा कुछ जजो , अवकाश प्राप्त अधिकारीयो के लिऐ रोजगार के अवसर नऐ सिरे से चालू हो जाऐगें, पर इस बात की राहत महसूस की जा सकती हैं कि दोनो संगठनो को सबक जरूर मिल गया कि पिछले बार वाली काठ की हाण्डी में अब धार्मिक उन्माद की खिचडी बनने से रही, 92 के दंगो ने लोगो को अब परिपक्व तो बना ही दिया, इसी वजह से बिना किसी जनाधार के धर्म के नाम पर दहाडने वाले इस जनतंत्र के तथाकथित कदद्रावर जनप्रतिनीधियो की भी इस निर्णय पर बोलती बन्द ही दिखी, यहां इस बात को भी समझना ही होगा की अगर पुरा मामला अगर आस्था का हैं तो अंधविश्वास भी हावी ही रहेगा इस लिऐ आगे जो निर्णय हो वो अगर सर्वमान्य न हो तो इा देश का मानवता के नाम पर अन्तिम आदेश तो होना ही चाहिये जो बिना किसी टकराव के माना जाऐ और चुनाव आयोग को भी ये सुनिश्चित करना चाहिऐ कि राममंदिर शब्द का प्रयोग चुनावो में प्रतिबंधित हो ..........सतीश चौहान, भिलाई छ.ग.
अगर आपको सुना दिखा सब सही लगता हैं तो निश्चय ही आप मुझसे असहमत होगें, क्योकी मेरी अब तक की जिन्दगी के अनुभवो में पांखण्ड ही ज्यादा नजर आया किसी ने रिश्तो की रस्म अदायगी की, तो किसी ने फर्ज या दायित्व कह कर टाल दिया , गरीब हो कर सीखा की मेहनत से आदमी अमीर होता हैं पर अमीर मेहनत कराने वाला हुआ, धूप,बरसात,गर्मी और ठंड में जी तोड मेहनत करता मजदूर गरीब ही रहा, बाजार में बचत करके अमीर होने की बात भी खारिज हो गई क्योकी यहां भी खर्च करने वाला ही अमीर हैं, जनप्रिय की कसौटी पर जनप्रतिनीधि ज्यादा ही जनता से दूर हैं ,सर्वव्यापी भगवान भी बेबस हैं उनके कपाट खुलने बन्द होने नाहने ,वस्त्र धारण, भोग का वक्त भी धर्म के ठेकेदारो द्वारा निर्धारित किया जा रहा हैं सरकारी दफतरो की तरह यहां भी सुविधा शुल्क हैं , डाक्टर मरने तो नही देता तो ठीक भी नही होने देता , वकील हारने नही देता तो जीतने भी नही देता, गुरू का दर्जा कर्मचारीयो जैसा हैं,और इस तरह जब सच न दिखे तो झूठ भी क्यो टिके .......? ब्लागिग में मेरा यही मिशन हैं .....
जन्मदिन 30 अक्टुबर 1968
स्थान भिलाई

1 टिप्पणी:
याद रखा जाना चाहिए कि--काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती हैं. बार-बार नहीं.
सच्चाई बयान करने के लिए बधाई.
धन्यवाद.
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