मंगलवार, 28 अप्रैल 2020
कराेना ..... हफते में दो रविवार होना चाहिये
पोस्ट यहॉं पेस्ट करें
करोना को लेकर कुछ सकारात्मक पोस्ट भी पढ़ने को मिल रही हैं ,मोर,हाथी,शेर का सड़कों पर आना,साफ बादलों में टिमटिमाते तारे दिखना,नदीयों का साफ होना, चिड़ियों का आंगन में घुमना, हम आपका परिवार के साथ ज्यादा समय देना,घर के कामों में हाथ बंटाना,रसोई में नये नये प्रयोग,आफिस का तनाव से राहत ....कुल मिलाकर आडम्बरो यह से किनारा, हर हाल में जीने से समझोता .
दरअसल हम फिर प्रकृति के करीब ही आ गये, जानवरों ने हम पर विश्वास कर लिया,घर की चारदिवारी और छत भी धड़कने लगी, जीवन के सवाल पर अर्थ लाभ की सोच चरमरा गई हैं,
वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर करोना वायरस का स्वतंत्र जीवन दो सप्ताह का ही है जिस पर हम आप विजय हासिल करेंगे ही,पर क्या बेहतर नहीं की प्रकृति ने जिस तरह हमें पेड़,पौधे,हवा,पानी ,जीव जंतु से पुनः एक बार साथ जोड़ने का काम किया हैं ,जिससे वातावरण में स्वच्छता और ताजगी आई है,जो परजीवी जीवाणु ,रोगणु और विषाणुओं करीब फटकने नहीं देती , इसे क्यों ना बनाया रखा जाए,जब ज्ञान विज्ञान, अनुसंधान, भगवान से बेहतर काम हमारे लाक डाउन से ही हो सकता हैं तो क्यों ना हम इको सन्तुलन को बनाए रखते हुए यह प्रण लें कि हमेशा लिऐ हफ्ते एक नहीं दो रविवार मनाएंगे, परिवार के साथ घर की चारदीवारी में ही रहेंगे ,ना वायु प्रदूषण ना ध्वनि प्रदूषण ,ना जल प्रदूषण.वो ही जानवर नदिया तारे अपनी आने वाली पीढीयो को दिखा सके ....
अगर आपको सुना दिखा सब सही लगता हैं तो निश्चय ही आप मुझसे असहमत होगें, क्योकी मेरी अब तक की जिन्दगी के अनुभवो में पांखण्ड ही ज्यादा नजर आया किसी ने रिश्तो की रस्म अदायगी की, तो किसी ने फर्ज या दायित्व कह कर टाल दिया , गरीब हो कर सीखा की मेहनत से आदमी अमीर होता हैं पर अमीर मेहनत कराने वाला हुआ, धूप,बरसात,गर्मी और ठंड में जी तोड मेहनत करता मजदूर गरीब ही रहा, बाजार में बचत करके अमीर होने की बात भी खारिज हो गई क्योकी यहां भी खर्च करने वाला ही अमीर हैं, जनप्रिय की कसौटी पर जनप्रतिनीधि ज्यादा ही जनता से दूर हैं ,सर्वव्यापी भगवान भी बेबस हैं उनके कपाट खुलने बन्द होने नाहने ,वस्त्र धारण, भोग का वक्त भी धर्म के ठेकेदारो द्वारा निर्धारित किया जा रहा हैं सरकारी दफतरो की तरह यहां भी सुविधा शुल्क हैं , डाक्टर मरने तो नही देता तो ठीक भी नही होने देता , वकील हारने नही देता तो जीतने भी नही देता, गुरू का दर्जा कर्मचारीयो जैसा हैं,और इस तरह जब सच न दिखे तो झूठ भी क्यो टिके .......? ब्लागिग में मेरा यही मिशन हैं .....
जन्मदिन 30 अक्टुबर 1968
स्थान भिलाई
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