बुधवार, 6 मई 2020
करोना से दोस्ती ही बेहतर ......
वैसे तो करोना ने जनवरी में ही दस्तक दे दी थी, हमारी बेरूखी पर उसने चीन,इटली ,अमेरिका जैसे विकसित देशों में अपना तांडव भी दिखाया, अंततः करोना हमारे भी गले पड़ ही गया,पिछले दो माह से हमारी तमाम मान-मनौव्वल से बेपरवाह करोना अपने लगातार पैर पसार रहा हैं , आज पुरा विश्व नीरीह प्राणी बन हाथ पर हाथ धरे बैठा हैं,तमाम सुपर पावर जल से आकाश तक बिजली की गति से शिकार करने वाले भी मुंह छुपाए दुबके हुए हैं , तमाम संसाधन, संगठन , अनुसंधान, अनुष्ठान सब फेल ....करोना के लगातार बढ़ते संक्रमण से निकट भविष्य में किसी तरह का भी छुटकारा मिलने की उम्मीद नहीं हैं, हमारे देश के लिऐ इस वायरस का यह सुखद अनुभव ही हैं की अभी तक अन्य संक्रामक बीमारी की अपेक्षा कम जानलेवा रहा हैं कई लोग तो अनजाने में ही इसके शिकार होकर ठीक भी हो गये, दरअसल पिछले कुछ वर्षों से हम लगातार किसी ना किसी वायरस की चपेट में आ रहें हैं पर बाजार की भाषा में करोना अपनी माकेटिंग ज्यादा ही सफल रहा , हेपेटाइटिस,मलेरिया,टी वी, इन्सेफेलाइटिस, डायरिया जैसी बीमारीयों में अपेक्षाकृत मौत के आंकड़े और ही भयावह हैं , इसलिए ये जरूरी हो जाता हैं की करोना को लेकर कुछ सकारात्मक सोच भी बनाई जाय , इस वायरस की वजह से निश्चय ही हम पारिवारिक हुऐ हैं हमने अपने परिवार को ज्यादा समय दिया, हमनें अभाव और बेबसी के लिए सहयोग के साथ बढ़ाए, हमारी विलासिता भी कम हुई हैं,अध्यात्म के नाम पर चल रहे आडंबरों को किनारे लगाया ,जन्म से मौत तक की औपचारिकताओं के बंधन तोड़ , थोड़ा हैं थोड़े की जरुरत में समेटा, हमारी घरेलू ,पारिवारिक रुचि और योग्यता को पहचान मिली, हम प्रकृति , पर्यावरण, समाज,और परिवार के लिऐ मर्यादित हुए,स्कूल कालेज बुनियादी योग्यता का महत्व समझा रहें है ,हम महसूस कर रहें हैं कि पशु पक्षी फिर हम से जुड़ रहें हैं चिड़ियों का चहचहाना बढ़ा हैं , नदी-तालाब का पानी साफ हुआ हैं , हवाओं में शुद्धता हैं आकाश साफ है,करोना संकट हमारी अनावश्यक आपाधापी को भी कम किया हैं, हमारी जरूरतें कम हुई हैं, हमें अनुशासन सिखाया हैं है हमारी सीमाएं निर्धारित की है , हमें भीड़ से छुटकारा दिलाया हैं , हमारी आपकी बातों में हवा-हवाई और स्पर्धा कम होकर आवश्यकताओं और मेहनत में संतुलन के प्रयोग हो रहें हैं, हमारे लिए अस्पताल, माल, सिनेमा और धार्मिक स्थलों की उपयोगिता कम हुई हैं, अस्पतालो आपरेशन कम हो रहें हैं , सीजेरियन डिलीवरी पर अंकुश,हार्ड अटैक के केश कम हैं , अपराध कम , दुर्घटनाएं कम ,पूजा अर्चना, सत्संग कीर्तन, का महत्व कम, ऐसा नहीं की बीमारी नहीं है, बच्चे पैदा होने रुख गये, ईश्वर नहीं हैं , दरअसल हमारा अंकगणित वरीयताएं निर्धारित करने में लग गया हैं , रोजगार कम हुआ हैं , उत्पादन कम हुआ हैं तो निश्चय ही हमारी आवश्यकताओं पर भी आत्ममंथन होगा ,जिसका मुलयांकन हमें स्वयं करना होगा , चुकीं निकट भविष्य में करोना के खत्म होने की कोई संभावना नहीं है तो बेहतर हैं लड़ने, जीतने जैसे राजनैतिक बयानों के बजाय इसकी शर्तों से समझोता करना चाहिए..! यकीन मानिए देश की करोना से ज्यादा शातिर हैं ,हम करोना से बच कर भी सत्ता की राजनीति से घुट घुट कर मर रहें हैं, इसके वैक्सीन बेहतर इलाज के आश्वासन उतने ही सही हैं जितने बाजार में बिक रहे सेनेटाइजर और मास्क कभी मानक मापदंडों पर परीक्षण तो कराइए, निसंदेह करोना के लिऐ अगर सोशल डिस्टेंस जरुरी हैं तो बचिए अनावश्यक भीड़ से , प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिऐ जैविक खेती करिए, व्यवसायिक स्पर्धा से कम करके ब्लड प्रेशर और डायबिटीज से छुटकारा पाये .....
अगर आपको सुना दिखा सब सही लगता हैं तो निश्चय ही आप मुझसे असहमत होगें, क्योकी मेरी अब तक की जिन्दगी के अनुभवो में पांखण्ड ही ज्यादा नजर आया किसी ने रिश्तो की रस्म अदायगी की, तो किसी ने फर्ज या दायित्व कह कर टाल दिया , गरीब हो कर सीखा की मेहनत से आदमी अमीर होता हैं पर अमीर मेहनत कराने वाला हुआ, धूप,बरसात,गर्मी और ठंड में जी तोड मेहनत करता मजदूर गरीब ही रहा, बाजार में बचत करके अमीर होने की बात भी खारिज हो गई क्योकी यहां भी खर्च करने वाला ही अमीर हैं, जनप्रिय की कसौटी पर जनप्रतिनीधि ज्यादा ही जनता से दूर हैं ,सर्वव्यापी भगवान भी बेबस हैं उनके कपाट खुलने बन्द होने नाहने ,वस्त्र धारण, भोग का वक्त भी धर्म के ठेकेदारो द्वारा निर्धारित किया जा रहा हैं सरकारी दफतरो की तरह यहां भी सुविधा शुल्क हैं , डाक्टर मरने तो नही देता तो ठीक भी नही होने देता , वकील हारने नही देता तो जीतने भी नही देता, गुरू का दर्जा कर्मचारीयो जैसा हैं,और इस तरह जब सच न दिखे तो झूठ भी क्यो टिके .......? ब्लागिग में मेरा यही मिशन हैं .....
जन्मदिन 30 अक्टुबर 1968
स्थान भिलाई
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