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मंगलवार, 12 मई 2020

गरीब ....


चाक चौबंद व्यवस्था में मुस्तैदी से सर झुकाए खड़े आई एसआई पी एस पुरे शहर की व्यवस्था को किनारे कर.रेड कारपेट पर उसके कदमों का इंतजार करते दिखते हैं ! समुचे शहर के स्कूल कालेजों दफ्तर बंद कर लोगों को बसों में भर कर एक विशाल मंच के सामने भीड़ के रुप में फैला दिला जाता हैं लाखों के फुलों से सजे मंच में तमाम पांच सितारा व्यवस्थाएं जुटाने में महीनों पुरा पुरा सरकारी अमला मेहनत करता
हैं, बेहिसाब ख़र्च  !​ हवा को चीरते हुऐ गड़गड़ाते हेलीकॉप्टर से वो अवतरित होते है! उसको देखने-सुनने के लिऐ लगी बड़ी बड़ी स्क्रीन पर दूर से ही देख कर लोग उत्साहित हो जाते हैं,बढ़िया से सूट-बूट में और इको गूँज वाले साउंड में आकर बोलते है..
" मैं ग़रीब का बेटा हूं "
इको साउंड में ग़रीब का बेटा हूं ? गुंजते ही भीड़ भावविभोर हो जाती हैं कितना अपना सा हैं ये गरीबलोकलुभावनी चाशनी में लिपटे लच्छेदार  वादें इरादे ये महसूस कराने को काफी हैं कि  ये ही वह अवतार हैं जिसकी वर्षों से तलाश थी ,सहूलियतो दबा मीडिया सारे पन्ने उसकी भक्ति में पाट देते हैं, ​​ आलेखों में भी वो ग़रीब का बेटा ही रहता है! ​तमाम चैनलो के रिकार्ड  की सुई " ग़रीब का बेटा है " पर अटक जाती हैं गरीब को यकीन कराने में पुरी कायनात लग जाती हैं की की इस सदी का यह चमत्‍कार ही गरीब हैं जो हमारी आपकी गरीबी मिटाने के लिऐ ही अवतरित हुआ हैं,अब गरीब गरीब नही रह जाता वह उस गरीब के समकक्ष महसूस करने लगता है,वह भी गरीबी को मिटाने के लिऐ तैयार हो जाता हैं, अब वह गरीबी को बेबसी नही छाती पर लगा तमगा महसूस करता हैं , वह एक गरीब सरगना का गरीब शार्गिद बन जाता हैं, और गरीबी उसकी शिकार बन जाती हैं , वह भी गरीब की गरीबी को प्रमुखता देने लगता हैं, उसके अधिकार की बिसात पर अपनी सुख सुविधा का दांव लगाने लगता हैं इसी तरह से वर्षों
 से ऐसे गरीब आ रहे हैं ग़रीबी मिटाने के नाम पर गरीब मिटाते हुए खुद अमीर बन रहें हैं ,
हमारी आपकी चर्चाओं में भी वो ग़रीब का बेटा शामिल हो जाता है! लेकिन ग़रीब नही रहता ?

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