
जब हम छोटे थे तब डमरू वाले मदारी और उनके जमूरे आते थे,जो बंदर, बंदरिया व भालू की उछलकूद के साथ इनकी शादी भी कराते थे बंदरिया के नखरे ,प्यार और रूठ कर मायके जाने की अदा, भालू का दुल्हा बन कर मटकना खूब हंसाता था, ऐसा ही कुछ कुछ होता था ढोल और थाली बजाते हुऐ रस्सी पर चलने वालो और छोटे से रिंग से अपने शरीर को तोड मरोड कर निकालने
जिसमें भी मेहनत व कलाबाजी थी,मंनोरंजन भी अच्छा होता था, रूपया, दो रूपया, चांवल आटा देकर लोग खुश हो लेते थे पर बात तब बिगडती थी इन मदारी किस्म के लोगो ,द्वारा जब हम जैसे तमाशबीनो में प्रबल असुरक्षा के भय को जगा कर वैज्ञानिक प्रमाणिकताहीन ताबीज बेचने का प्रयास होता था और यही इमोशनल अत्याचार की शुरूवात हैं.... ऐसा ही कुछ कर रहे हैं हमारे देश के बाबा किस्म के लोग.......
निरोग के लिऐ योग तो ठीक हैं,पर संत के चोले में चल रहा जडी बूटी का बडा कारर्पोरेट बिजनेश पुरे देश में उसके आउटलेट खोल कर झोला छाप लोगो की कलम से प्रमाणिकताहीन जडी बूटी, सब्जी भाजी,नैतिकता और डाक्टरेट की किताबो के आकर्षक पैकट उचे दाम पर बिकवाना ये भी तो हैं इमोशनल अत्याचार..............
इन माफिया किस्म के बिजनेस के खिलाफ भाषण बेकार हैं, क्योकी आस्था ,मीडिया ( इनके खुद के चैनल हैं ) और राजनीति जिसके साथ हैं वो ही सिकन्दर हैं,पर कडवा सच तो ये हैं कि
आस्था और अंधविश्वास के बीच बहुत महीन पर्दा शेष हैं........
जमूरे शुरू हो जा सांस अन्दर ले, पैसे छोड दे
सतीश कुमार चौहान भिलाई
photo qsbs.blogspot
सतीश कुमार चौहान
2 टिप्पणियां:
वैसे इमोशनल अत्याचार आप भी कर रहे हैं,
(ये ब्लॉग लिखकर बाबाओं पर)
हा हाहा हा
धन्यवाद.
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अच्छी प्रस्तुति ।
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